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श्रीभगवद गीता में कर्मयोग

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श्रीमद् भगवद्गीता में कर्मयोग          बस युद्ध इसी की बाबत था, जग को प्रमाण इक देना था l जो सहज धर्म सम्मत मिलता,  उसको बल से ले लेना था I भगवान कृष्ण के सम्मुख,  अब  थी समस्या यह भारी l अर्जुन को  कैसे समझाएं,  जो कार्य करे वो हितकारी I मन का मोह जाल हरना था, साहस अर्जुन में भरना था l तज शस्त्र दुखी जो बैठा था, उत्साहित फिर से करना था I         श्रीमद् भगवद गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ  गीत है । जिसमें वह अर्जुन को  उपदेश देते हैं ,  लगभग 5000 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध में कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि  में जबकि सामने कौरवों की विशाल सेना खड़ी हुई थी।  जिसमें अन्य संबंधियों के साथ पितामह भीष्म एवम गुरू द्रोणाचार्य भी थे , को देखकर वह विषाद ग्रस्त हो गया था और युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहा था।  विषाद ग्रस्त अर्जुन को देखकर श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया l जिससे अर्जुन अन्याय पर  न्याय की विजय  प्राप्ति के लिए युद्ध करने हेतु प्रेरित हो सके। श्रीमद् भगवद्गीता  महाभारत के भीष्म पर्व का अंग है I इसमें कुल 18अध्याय हैं एवम 700 श्लोक हैं। 18 अध्याय  क्रमशः